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Thursday, January 5, 2012

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के विकास की जीवन-रेखा :
ऋण गारंटी योजना (सीजीएस) तथा ऋण गारंटी न्यास फंड (सीजीएफटी)

एमएसएमई आज भारत की अर्थव्यवस्था से जुड़ा एक बहुचर्चित शब्द बन गया है। दरअसल यह न तो शब्द है और न ही कोई संक्षेपाक्षर। यह समावेशी विकास का विजन है। आर्थिक रूप से मजबूत होते भारत की दूरदृष्टि है। आपको याद होगा कि लघु उद्योग और उनका विकास आजादी के बाद नए सिरे से विकसित और औद्योगिकीकृत होते भारत की प्रमुख प्राथमिकताओं में था। भारत सरकार ने 70 के दशक में पहली बार लघु उद्योग क्षेत्र के लिए अलग से नीति बनाने की घोषणा की थी। उसके बाद इस क्षेत्र का स्थान पंचवर्षीय योजनाओं और बजट के केंद्र में बना रहा। ठीक वैसे ही उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण (एलपीजी) के बाद बाजार आधारित अर्थव्यवस्था में एक रोल मॉडल की हैसियत रखने वाले भारत के लिए जरूरी हो गया कि बड़ी-बड़ी परियोजनाओं के पीछे सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) की आवाजें गुम न हो जाएं। बल्कि यह कहा जा सकता है कि बड़े उद्योगों को कच्चे माल, प्राथमिक वस्तुओं, तैयार घटकों की आपूर्ति इन्हीं उद्यमों के द्वारा होती है। चूंकि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र रोजगार सृजन, निर्यात तथा देश की एक बहुत बड़ी आबादी को आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होने में मदद करता है इसलिए इसे ‘सनराइज सेक्टर’ भी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
इस क्षेत्र में लगभग 2.6 करोड़ उद्यम काम कर रहे हैं। समूचे विनिर्मित उत्पादन में अकेले इसी क्षेत्र की भागीदारी 45 प्रतिशत और भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 8 प्रतिशत है। देश से होने वाले संपूर्ण निर्यात का 40 प्रतिशत भाग एमएसएमई की बदौलत होता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस क्षेत्र ने तकरीबन 6 करोड़ हाथों को रोजगार दिया है। इसके अलावा सिर्फ खेती-बाड़ी ही एक क्षेत्र है जिसने इससे अधिक लोगों को रोजी-रोटी दी है। इसलिए एमएसएमई न केवल समावेशी विकास का वाहक है बल्कि वह देश के सम, संतुलित एवं स्थिर विकास का भी आधारस्तंभ है। भारतीय रिज़र्व बैंक के उप गवर्नर डॉ.के.सी.चक्रवर्ती ने अपने एक भाषण में कहा है कि कल के एमएसएमई आज के बड़े कार्पोरेट्स हैं और कल की बड़ी एमएनसी। The MSMEs of yesterday are the large corporates of today and could be MNCs of tomorrow.
यह तस्वीर केवल भारत की नहीं है बल्कि समूची दुनिया में एमएसएमई का एक दमदार व्यावसायिक संगठन के रूप में उभार देखा जा रहा है। ये तमाम ऐसे नए क्षेत्रों में घुसपैठ बना चुके हैं जहां बड़ी कंपनियों या बड़े औद्योगिक घरानों की नज़र नहीं पड़ी या फिर उन्हें वहां मुनाफे का भविष्य नहीं दिखा और उन्होंने उनकी उपेक्षा की। ग्राहकों के ऐसे छोटे-छोटे संभावनाशील समूहों की उम्मीदों और सपनों में अपना बाजार (Niche Markets) ढूँढ़ने वाले एमएसएमई दुनिया भर में फैले हैं। उनकी सफलताएं उनके देशों की दंतकथाएं बन गई हैं। आपको बता दें कि यूरोपीय संघ के 99 प्रतिशत और अमेरिका के 80 प्रतिशत उद्यम लघु उद्यम हैं। भारत में भी इसकी हिस्सेदारी 97 प्रतिशत है। पांचवी अर्थिक गणना (अनंतिम आंकड़ा – जून 2006) के अनुसार कृषि से इतर 421.2 लाख उद्यमों में से 5.8 लाख उद्यम कारखाना इकाइयों के रूप में हैं। भारत सरकार द्वारा जून 2006 में स्वीकृत एमएसएमई की नई परिभाषा के अनुसार इन 5.8 कारखाना इकाइयों में से लगभग 5 लाख लघु एवं मध्यम उद्यम इकाइयां हैं।
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 बनने के बाद एमएसएमई क्षेत्र सुपरिभाषित हो गया है। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम और उनमें निवेश की सीमाएं स्पष्ट कर दी गई हैं। अन्य देशों में जहां नियोजित कर्मचारियों तथा धारित पूंजी आदि के आधार पर एसएमई को परिभाषित किया जाता है वहीं भारत में इन उद्यमों को प्लांट एवं मशीनरी में निवेश की राशि के आधार पर परिभाषित किया जाता है। इस प्रकार मोटे तौर पर इन उद्यमों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
(क) विनिर्माण
(ख) सेवाएं प्रदान करने में लगे उद्यम
उद्यमों के दोनों वर्गों को प्लांट एवं मशीनरी में उनके निवेश (विनिर्माण उद्योगों के लिए) या उपस्करों में उनके निवेश (सेवा प्रदान करने वाले उद्यमों के मामले में) के आधार पर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों में वर्गीकृत किया जाता है। एमएसएमई क्षेत्र में निवेश की उच्चतम राशि बढ़ाकर 10 करोड़ रुपये तक किए जाने के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि इस क्षेत्र की प्रगति जोर पकड़ेगी। अब बहुत संभावना है कि प्रौद्योगिकी तथा आधुनिकीकरण की प्रक्रिया भी इस क्षेत्र में शुरू होगी जो न केवल उदारीकरण और वैश्वीकरण बल्कि विश्व व्यापार संगठन की शर्तों के नए संदर्भ में जारी प्रतिस्पर्धा में इस क्षेत्र के टिके रहने के लिए भी जरूरी है।

क्रेडिट की जरूरत

एमएसएमई देश की अर्थव्यवस्था के विकास के वाहक हैं। लेकिन उन्हें अपने व्यवसाय या उद्यम के लिए हमेशा फंड का टोटा रहता है। बैंक एवं वित्तीय संस्थाएं या तो कतराती रही हैं या बहुत बेमन से उनकी निधिगत जरूरतों को पूरा करती रही हैं। हालांकि सरकार तथा भारतीय रिज़र्व बैंक के फोकस में होने के नाते अब एमएसएमई के प्रति वित्तीय संस्थाओं और बैंकों का रुझान बढ़ा है। फिर भी एमएसएमई को जरूरत पड़ने और समय पर क्रेडिट हासिल करने में दिक्कतें उठानी पड़ती हैं। देखा गया है कि इस क्षेत्र को उधार की जरूरतें प्राय: छोटी होती हैं लेकिन वे जरूरतें बार-बार पड़ती रहती हैं और यह एक वज़ह है कि बैंक एवं वित्तीय संस्थाएं उनमें दिलचस्पी नहीं लेतीं। इसके अलावा अधिकतर एमएसएमई पहली पीढ़ी के उद्यमों से संबद्ध होने के नाते क्रेडिट के लिए संपार्श्विक यानी कोलैटरल का इंतजाम नहीं कर पाते जो उनके उद्भव में एक अड़चन है।
अभी पाँच-दस साल पहले तक एमएसएमई द्वारा ऋण चुकौती में चूक के मामले आम थे। इसके पीछे कई कारण थे। एक कारण यह भी था कि इन उद्यमों के पास प्रौद्योगिकी, कार्पोरेट गवर्नेंस, शोध एवं विकास का कोई क्षितिज नहीं था। कहा जा सकता है कि उनके पास कोई न तो कोई सुपरिभाषित प्रोफेशनल तकाजे थे और न ही कोई प्रबंधनकीय एवं संगठनात्मक दृष्टि। वे बाजार की प्रतिस्पर्धा से लगभग कटे हुए थे। उनका कोई चेहरा नहीं था। लिहाजा ऐसे उद्यमों के पास किसी भी औद्योगिक मंदी या अर्थव्यवस्था में सुस्ती की मार झेलने की कूवत नहीं थी। यही वजह थी कि बैंक उन्हें क्रेडिट देने से कतराते थे।
एमएसएमई को ऋण उपलब्ध कराने की प्रणाली यानी credit delivery mechanism की जो सबसे बड़ी खामी थी वह खास तौर पर लघु उधारकर्ताओं को ऋण प्राप्त करने में होने वाला विलंब था जो उनकी समस्त योजना को मटियामेट कर देता था। उन्हें ऋण हासिल होते-होते समय और लागत का भारी नुकसान हो जाया करता था। यानी इन उद्यमों पर ‘का वर्षा जब कृषि सुखानी’ वाली कहावत चरितार्थ होती थी।
अपने उद्यमों को अमलीजामा पहनाने के लिए इन एमएसएमई उद्यमियों के पास समय का सधा हुआ हिसाब-किताब नहीं होता था। इन उद्यमों के लिए वर्ष-भर में गाहे-बगाहे पड़ने वाली जरूरतों का आकलन करने और उनके लिए फंड का इंतजाम करने की दूरदर्शिता नहीं थी। एमएसएमई की इस समस्या का समाधान क्रेडिट स्कोरिंग मॉडल में ढूँढ़ा गया। इसकी चर्चा फिर कभी।
इस आलेख का विषय क्रेडिट गारंटी योजना (सीजीएस) तथा क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (सीजीएफटी) है। दरअसल इस योजना या इस फंड का मकसद ऋण के लिए संपार्श्विक के अभाव में परेशानहाल एमएसई को इस समस्या से निजात दिलाना था। यह उधारकर्ता एमएसई और बैंक दोनों के लिए सुविधाजनक है क्योंकि इसमें दोनों को फायदा है।

ऋण गारंटी निधि योजना

यह ऋण गारंटी निधि न्यास (सीजीएफटी) के न्यास मंडल द्वारा एमएसई उद्यमों को ऋण सुविधाओं के लिए गारंटी प्रदान करने के प्रयोजन से बनाई गई एक योजना है। उक्त योजना 1 अगस्त 2000 को लागू हुई। प्रारंभ में इस योजना का आधिकारिक नाम लघु उद्योगों के लिए ऋण गारंटी निधि योजना (सीजीएफएसआई) था। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 बनने के बाद इसका नाम सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों के लिए ऋण गारंटी निधि योजना (सीजीएसएमएसई) तथा निधि का नाम सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों के लिए ऋण गारंटी निधि (सीजीएफटीएमएसई) हो गया।
इस न्यास की स्थापना भारत सरकार के तत्कालीन लघु उद्योग मंत्रालय तथा सिडबी ने मिलकर की थी। इस न्यास की निधि में भारत सरकार तथा सिडबी की हिस्सेदारी का अनुपात 4:1 है। सिडबी द्वारा संचालित इस न्यास का मुख्य कार्य सूक्ष्म एवं लघु उद्यम इकाइयों को बैंकिंग तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं से ऋण प्राप्त करने के दौरान संपार्श्विक प्रतिभूति या तृतीय पक्ष की गारंटी जुटाने की समस्या से निजात दिलाना है। यह न्यास एमएसई इकाइयों को सदस्य ऋणदात्री संस्थाओं (एमएलआई) द्वारा बिना संपार्श्विक प्रतिभूति के दिए गए मीयादी ऋण अथवा कार्यशील पूंजी सुविधा के 75 प्रतिशत भाग की गारंटी देता है। शर्त यह है कि किसी भी उधारकर्ता को दिया जाने वाला अधिकतम ऋण 100 लाख रुपये से अधिक न हो। यहां यह बारीकी समझना जरूरी है कि इस योजना के तहत किसी एमएसई उधारकर्ता को 100 लाख रुपये से भी अधिक ऋण मंजूर किया जा सकता है लेकिन न्यास के गारंटी कवर के अंतर्गत शुरुआती 100 लाख रुपये का 75% अर्थात केवल 62.50 लाख रुपये ही आएंगे।
इस योजना को पूरी तरह कंप्यूटरीकृत वातावरण में संचालित किया जा रहा है। इसमें बी2बी ई-व्यापार मॉडल का प्रयोग किया गया है।
किसी एमएलआई को यह योजना शुरू करने से पहले अपने उन आंचलिक/क्षेत्रीय/शाखा कार्यालयों के नाम और पते सीजीएफटी को उपलब्ध कराने होते हैं जिनके माध्यम से वे इस योजना को संचालित करना चाहते हैं। इसके अलावा उन्हें उन कार्यालयों के एक नोडल अधिकारी सहित दो अन्य अधिकारियों के नाम एवं संपर्क व्यौरे देने होंगे। ये अपेक्षित ब्यौरे प्राप्त होने के बाद न्यास उन एमएलआई को एक सदस्य आईडी एवं पासवर्ड आबंटित करता है। उसके बाद एमएलआई गारंटी कवर के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकता है क्योंकि आवेदन पत्र ऑनलाइन प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
यह न्यास एमएसई क्षेत्र के उद्यमों को सीधे गारंटी कवर नहीं दे सकता। सीजीएफटी केवल अपने पंजीकृत एमएलआई को ही गारंटी कवर देता है। सीजीटीएमएसई का पंजीकृत कार्यालय मुंबई में है और उसके व्यवसाय विकास कार्यालय नई दिल्ली तथा कोलकाता में स्थित हैं। ऋण गारंटी न्यास का संपूर्ण परिचालन ऑनलाइन होता है। इसलिए सीजीएफटी मुंबई से ही अपने सभी एमएलआई की आवश्यकताएं पूरी कर सकता है।

गारंटी शुल्क एवं वार्षिक सेवा शुल्क

1 अप्रैल 2006 से इस न्यास का एकमुश्त गारंटी शुल्क 5 लाख रुपये तक की स्वीकृत ऋण सुविधा पर 1।0 प्रतिशत तथा 5 लाख रुपये से अधिक ऋण पर 2।5 प्रतिशत से घटाकर 1.5 प्रतिशत कर दिया गया है। साथ ही, सिक्किम सहित पूर्वोत्तर क्षेत्र के एमएसएमई इकाइयों के लिए 50 लाख रुपये तक के ऋण पर एकमुश्त गारंटी शुल्क 0.75 प्रतिशत निर्धारित किया गया है। सभी मामलों में न्यास को गारंटी शुल्क का भुगतान गारंटी प्राप्त करने वाली संस्था को ऋण (कार्यशील पूंजी पर लागू नहीं) की पहली खेप के संवितरण की तारीख से 30 दिन के भीतर अथवा गारंटी शुल्क की मांग सूचना की तारीख से 30 दिन के भीतर, इनमें से जो बाद में हो, या न्यास द्वारा यथानिर्धारित तारीख के भीतर करना अनिवार्य है।
बाद में गारंटी शुल्क में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता क्योंकि इसका भुगतान गारंटी कवर प्राप्त करते समय एकमुश्त किया जाता है। जहां तक वार्षिक सेवा शुल्क का संबंध है, गारंटीकृत ऋण सुविधाओं के लिए उसका भुगतान पहले वर्ष में आनुपातिक आधार पर गारंटी कवर के प्रारंभ होने की तारीख से 31 मार्च तक की स्थिति के अनुसार प्रभावी दर से किया जाता है। बाकी वर्षों के दौरान इस शुल्क की गणना 365 दिन का वर्ष मानकर किया जाता है। इस शुल्क का भुगतान गारंटी का दावा करने की तारीख से गारंटीकृत राशि के 75 प्रतिशत भुगतान की पहली किश्त के निपटान तक की अवधि के लिए करना अनिवार्य है। तथापि, प्रारंभिक अवरुद्धता अवधि की समाप्ति यानी गारंटी कवर शुरू होने की तारीख से 18 महीने अथवा ऋण के अंतिम संवितरण की तारीख से पहले, इनमें से जो भी बाद में हो, और गारंटी कवर की अवधि समाप्त होने के बाद गारंटी के लिए कोई दावा नहीं किया जा सकता।
न्यास के खाते में गारंटी शुल्क जमा होने की तारीख से गारंटी कवर प्रारंभ हो जाता है और वह मीयादी ऋण/संमिश्र ऋण की निर्धारित अवधिपर्यंत जारी रहता है। लेकिन कार्यशील पूंजी के रूप में पात्र एमएसई उधारकर्ता को प्रदान की गई ऋण सुविधा के मामले में यह कवर 5 वर्ष अथवा गारंटी कवर का नवीकरण होने के पश्चात 5-5 वर्ष की अवधि के लिए जारी रहता है बशर्ते एमएलआई 31 मार्च की स्थिति के अनुसार प्रतिवर्ष अधिकतम 31 मार्च तक वार्षिक सेवा शुल्क का भुगतान करता हो।
इस योजना के तहत ऋण सुविधा पर गारंटी केवल तभी दी जा सकती है जब ऋणदात्री संस्था ने किसी एमएसई को ऋण बिना किसी संपार्श्विक प्रतिभूति या तृतीय पक्ष की गारंटी के दिया हो। यह भी जरूरी है कि उधारकर्ता ने केवल एक संस्था से ऋण हासिल किया हो। लेकिन सिडबी, एनएसआईसी, नेडफी, एसएफसी या किसी राज्य की वित्तीय संस्था द्वारा ऋण सुविधा से लाभान्वित होने वाली एमएसई इकाइयों को किसी दूसरी वित्तीय संस्था से ऋण हासिल करने की मनाही नहीं है। वे इस स्थिति में भी इस योजना के अंतर्गत गारंटी कवर के लिए पात्र होंगी।

एमएलआई

सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (सरकारी एवं निजी क्षेत्र के बैंक तथा विदेशी बैंक), चुनिंदा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक तथा भारत सरकार द्वारा अनुमोदित वित्तीय संस्थाएं इस योजना के अंतर्गत गारंटी कवर की पात्र हैं। ध्यान देने की बात है कि सरकारी, निजी क्षेत्र के केवल वही बैंक तथा विदेशी बैंक एमएलआई हो सकते हैं जो अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक हों यानी उनका नाम भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की दूसरी अनुसूची में दर्ज होना चाहिए। इसी प्रकार केवल वे ही क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक पात्र हो सकते हैं जो नाबार्ड द्वारा धनात्मक मालियत वाले सक्षम श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है। ऐसे पात्र क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा एमएसई क्षेत्र के किसी एकल पात्र उधारकर्ता को मीयादी ऋण तथा/अथवा कार्यशील पूंजी सुविधा के रूप में दी गई 50 लाख रुपये तक की ऋण सुविधा इस गारंटी कवर के भीतर आएगी। इन्हें सदस्य ऋणदात्री संस्थाएं (एमएलआई) कहा जाता है। इनके अलावा भारतीय लघु औद्योगिक विकास बैंक (सिडबी), राष्ट्रीय लघु औद्योगिक निगम लि.(एनएसआईसी) तथा पूर्वोत्तर विकास वित्त लि. (एनईडीएफआई) को भी इस योजना के अंतर्गत एमएलआई के रूप में शामिल किया गया है। लेकिन अनुसूचित सहकारी बैंक, शहरी सहकारी बैंक तथा ग़ैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां सीजीएफटी की पात्र वित्तीय संस्थाएं नहीं हैं।
प्रश्न उठता है कि कैसे कोई ऋणदात्री वित्तीय संस्था इस योजना या इस न्यास के अंतर्गत गारंटी कवर की पात्र बनती है? इसके लिए पात्र ऋणदात्री संस्था को सीजीटीएमएसई के साथ एकमुश्त समझौता करना पड़ता है। इस समझौते के बाद उस संस्था को इस न्यास की सदस्य ऋणदात्री संस्था (एमएलआई) का दर्जा मिल जाता है। इसके बाद वह संस्था किसी पात्र उधारकर्ता को मंजूर ऋण सुविधा के संबंध में न्यास से गारंटी कवर के लिए आवेदन कर सकता है। अमूमन सीजीटीएमएसई सदस्य ऋणदात्री संस्थाओं पर भरोसा रखते हुए उनके द्वारा अनुमोदित ऋण प्रस्तावों को गारंटी कवर के लिए मंजूर कर लेता है। वह उन प्रस्तावों की पुनर्समीक्षा नहीं करता। वह मानकर चलता है कि इन संस्थाओं ने अपने वाणिज्यिक कौशल और अपेक्षित सावधानी (due diligence) का प्रयोग करते हुए व्यावहारिक रूप से सक्षम प्रस्तावों को ही स्वीकार किया होगा।

पात्र उधारकर्ता

इस योजना के तहत फुटकर व्यवसाय को छोड़कर विनिर्माण तथा सेवा क्षेत्र से जुड़े नए और मौजूदा दोनों प्रकार के एमएसई उद्यम पात्र उधारकर्ता होते हैं। अद्यतन स्थिति यह है कि “प्राथमिकताप्राप्त क्षेत्र को उधार” पर भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 के अनुसार सेवा क्षेत्र से संबद्ध फुटकर व्यापार छोड़कर सभी क्रियाकलापों के लिए इस योजना के तहत ऋण और गारंटी कवर का प्रावधान किया गया है। इस योजना के तहत लघु सड़क तथा जल परिवहन ऋण पर उनके संचालकों को भी गारंटी कवर प्रदान किया गया है।
इस योजना के अनुसार पात्र उधारकर्ता से अपेक्षित है कि वह ऋणदात्री संस्था से ऋण सुविधा हासिल करने से पहले आयकर स्थायी खाता संख्या यानी आईटी पैन प्राप्त कर ले। आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 272(सी) के साथ पठित धारा 139ए(5) के अनुसार आयकर संबंधी सभी दस्तावेजों पर पैन नम्बर दर्शाना अनिवार्य है जिनमें विवरणी, चालान, अपील इत्यादि भी शामिल हैं। एमएसएमई क्षेत्र के छोटे उद्यमों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से सीजीटीएमएसई फिलहाल 10 लाख रुपये तक के ऋणों के मामलों में गारंटी कवर के लिए पैन पर जोर नहीं दे रहा है। लेकिन 10 लाख रुपये से अधिक के ऋण के लिए इसकी अनिवार्यता में कोई ढील नहीं देता।
किसी पात्र एमएसई उधारकर्ता को अधिकतम 100 लाख रुपये की ऋण सुविधाएं एक अथवा एक से अधिक बैंकों तथा/अथवा एक अथवा एक से अधिक वित्तीय संस्थाओं द्वारा संयुक्त रूप तथा/अथवा अलग-अलग दी जा सकती हैं बशर्ते उक्त राशि संबंधित सदस्य ऋणदात्री संस्था अथवा न्यास द्वारा निर्धारित ऋण राशि की उच्चतम सीमा से कम हो। इस संयुक्त वित्तपोषण को गारंटी कवर प्राप्त होगा। किसी स्व-सहायता समूह को दी गई ऋण सुविधा इस गारंटी की पात्र नहीं होगी।

ऋण सुविधा

इस योजना के तहत प्रति उधारकर्ता निधि तथा गैर-निधि आधारित कुल ऋण सुविधाएं मिलाकर अधिकतम 100 लाख रुपये को गारंटी कवर दिया गया है। शर्त यह है कि ये ऋण सुविधाएं किसी एमएसएमई की परियोजना की व्यावहारिकता को ध्यान में रखकर बिना किसी संपार्श्विक अथवा तृतीय पक्षकार की गारंटी के दी गई हों। निधि आधारित ऋण सुविधा में मीयादी ऋण तथा गैर-निधि आधारित ऋण सुविधा में साख-पत्र, बैंक गारंटी आदि को शामिल किया गया है।
इस योजना के अंतर्गत किसी पात्र उधारकर्ता को 100 लाख रुपये से अधिक ऋण सुविधाएं दी जा सकती हैं बशर्ते संपूर्ण ऋण बिना किसी संपार्श्विक अथवा तृतीय पक्षकार की गारंटी के दी गई हो। फिर भी गारंटी कवर केवल 100 लाख रुपये तक ही सीमित होगा। इसका मतलब है कि न्यास मामले के अनुसार 62.50 लाख रुपये यानी 75 प्रतिशत अथवा 65.00 लाख यानी 80 प्रतिशत ऋण जोखिम ही बर्दाश्त करेगा। सामान्यत: न्यास 75 प्रतिशत ऋण जोखिम को गारंटी कवर के दायरे में समेटता है; लेकिन सूक्ष्म उद्यमों को दी गई 5 लाख रुपये की ऋण सुविधाओं को वह 85 प्रतिशत गारंटी कवर प्रदान करता है। इसके अलावा न्यास महिलाओं द्वारा संचालित तथा सिक्किम सहित पूर्वोत्तर क्षेत्र के एमएसई उद्यमों को अधिकतम 65 लाख रुपये की ऋण सुविधाओं पर 80 प्रतिशत गारंटी कवर भी देता है।
इस योजना के तहत जरूरी नहीं है कि किसी एमएलआई द्वारा किसी पात्र उधारकर्ता को ऋण सुविधा के रूप में मीयादी ऋण तथा कार्यशील पूंजी दोनों एक साथ दिया जाए। फिर भी उसे गारंटी कवर का लाभ मिलेगा। इसके अलावा किसी ऋणदात्री संस्था द्वारा संपार्श्विक के आधार पर किसी उधारकर्ता को दी गई ऋण सुविधा को भी गारंटी कवर देने का प्रावधान इस योजना में किया गया है बशर्ते वह संस्था न केवल उधारकर्ता की संपार्श्विक प्रतिभूति पर से अपना अधिकार त्याग दे बल्कि न्यास से गारंटी कवर प्राप्त करने से पहले सभी संपार्श्विक आस्तियां उधारकर्ता को सौंप दे। कुछ परिस्थितियों में यदि किसी एमएलआई के लिए संपार्श्विक प्रतिभूति को अपने पास रखना जरूरी हो और उसने उसी उधारकर्ता को नई ऋण सुविधा बिना किसी संपार्श्विक के दी हो तो उसे इस गारंटी कवर दिया जा सकता है बशर्ते एमएलआई पहले वाले संपार्श्विक को किसी भी रूप में नई ऋण सुविधा से संबद्ध न करता हो।
इस योजना से लाभान्वित होने वाले एमएसई उधारकर्ताओं के ऋणों पर ब्याज की दर भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों के अनुसार लगाई जाती है। तथापि, ब्याज दर को एमएलआई की मुख्य उधार दर (पीएलआर) से किसी भी स्थिति में 3 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। इसमें न्यास को देय गारंटी शुल्क या वार्षिक सेवा शुल्क शामिल नहीं है।

गारंटी कवर

न्यास के खाते में गारंटी शुल्क जमा की तारीख से गारंटी कवर प्रारंभ हो जाता है और वह मीयादी ऋण/संमिश्र ऋण की निर्धारित अवधिपर्यंत जारी रहता है।
यदि कोई एमएसई इकाई इस योजना के तहत ऋण सुविधा लेने के बाद कुछ अपरिहार्य कारणों से रुग्ण इकाई हो जाती है तो एमएलआई द्वारा उसके पुनर्वास या उसे सहायता देकर वापस पटरी पर लाने के लिए दिए गए ऋण को भी योजना के अनुसार अतिरिक्त समय के लिए गारंटी कवर दिया जाएगा बशर्ते उसे दी जाने वाली वित्तीय सहायता 100 लाख रुपये की अधिकतम सीमा के भीतर हो। इसके मानदंड न्यास द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
एमएलई द्वारा किसी पात्र एमएसई उधारकर्ता को दी गई ऋण सुविधा के संबंध में न्यास का गारंटी कवर निम्नलिखित परिस्थितियों में समाप्त हो जाएगा:
i. न्यास को बाद में यह पता चले कि एमएलआई ने किसी पात्र उधारकर्ता को संपार्श्विक अथवा तृतीय पक्षकार की गारंटी लेकर ऋण सुविधा प्रदान की है।
ii. न्यास को बाद में यह पता चले कि एमएलआई ने किसी पात्र उधारकर्ता को संपार्श्विक अथवा तृतीय पक्षकार की गारंटी लेकर दूसरी/उत्तरवर्ती ऋण सुविधा संपार्श्विक अथवा तृतीय पक्षकार की गारंटी के आधार पर मंजूर की है और उस मौजूदा ऋण सुविधा को भी उसके दायरे में लाने का काम किया है जिसके लिए पहले से उसे न्यास का गारंटी कवर प्राप्त है।
iii. न्यास को विनिर्दिष्ट समय या न्यास द्वारा बढ़ाई गई समय सीमा के भीतर वार्षिक सेवा शुल्क का भुगतान न किया गया हो।
iv. गारंटी कवर की समय सीमा समाप्त हो गई हो।
एमएलआई ऋण चुकौती में चूक होने पर गारंटी का दावा कर सकता है। तथापि, वह प्रारंभिक अवरुद्धता अवधि की समाप्ति यानी गारंटी कवर शुरू होने की तारीख से 18 महीने अथवा ऋण के अंतिम संवितरण की तारीख से पहले, इनमें से जो भी बाद में हो, और गारंटी कवर की अवधि समाप्त होने के बाद गारंटी के लिए कोई दावा नहीं कर सकता। नियमानुसार एमएलआई द्वारा किए गए दावे एवं ऋण की वसूली प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं से संतुष्ट होने के बाद सीजीएफटी मामले की प्रकृति के अनुसार चूक की गई राशि के गारंटीकृत अंश का 75 प्रतिशत या 80 प्रतिशत गारंटी देगा। शेष 25 प्रतिशत का भुगतान वसूली प्रक्रिया पूरी होने के बाद किया जाएगा। वसूली की पूरी जिम्मेदारी एमएलआई की होगी।
यदि किसी मामले में किसी ऋण सुविधा का कुछ अंश ईसीजीसी या किसी सरकारी या सामान्य बीमाकर्ता या बीमा, गारंटी या इंडेम्निटी का व्यवसाय करने वाले किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के संघ द्वारा अतिरिक्त गारंटी कवर के अधीन है तो उस ऋण सुविधा का उतना अंश इस सीजीटीएमएसई योजना के अनुसार न्यास के गारंटी कवर का पात्र नहीं होगा।
लोक अदालत के अंतर्गत जारी नोटिस के आधार पर गारंटी का दावा भी किया जा सकता है और गारंटी की पहली किश्त प्राप्त भी की जा सकती है क्योंकि लोक अदालत की नोटिस को कानूनी प्रक्रिया का प्रारंभ माना जाता है। इसके ठीक विपरीत वित्तीय आस्ति प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन अधिनियम,2002 के अंतर्गत मात्र जारी की गई नोटिस के आधार पर गारंटी का दावा नहीं प्रस्तुत किया जा सकता। इसके लिए एमएलआई को उक्त अधिनियम की धारा 13(4) के उपबंध के अनुसार कार्रवाई करनी होगी।

प्रतीक चिह्न
सीजीटीएमएसई को जोड़ने वाली तीन नीली पट्टियां सुविधा, आशा तथा प्रेरणा को दर्शाती हैं और अग्निशिखा उस सतत सहयोग को दर्शाती जो यह न्यास उद्यमियों को खुद का उद्यम स्थापित करने का सपना साकार करने के लिए देता है।
इस अग्निशिखा के चारों तरफ पीला रंग इस न्यास द्वारा एमएसई उद्यमियों को संपार्श्विक प्रतिभूति तथा/अथवा तृतीय पक्षकार की गारंटी से चिंतामुक्त करके अपना उद्यम खड़ा करने की ऊर्जा प्रकट करता है।
CGTMSE शब्द के ऊपर का त्रिकोण औद्योगिक इकाई तथा उसकी ऊर्ध्वाधर प्रगति का प्रतीक है।

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