बोल कि लब़ आज़ाद हैं तेरे........

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Friday, December 10, 2010

मीडिया


इंटरनेट सर! जन्मदिन मुब़ारक हो...

इस साल आपका कोई बेहद अपना और दुलारा 20 साल का हो गया। इसकी खबर तक आपको नहीं है। सोचिए जो सबकी खबर देता है उसकी ख़बर लेनी की जब बारी आई तो हममें से बहुत लोग बेखबर रहे। कितनी बुरी बात है कि उसकी 20वीं सालगिरह पर हम उसे अपनी शुभकामनाएँ भी देना भूल गए जिसका बहुत एहसान हम पर है। 20 साल की जवान उम्र में भी वह बुजुर्गों की तरह बड़ी-बड़ी बातें करता है और हमें नई-नई दिशाओं की सैर कराता है। उसने हमारी दुष्कर परेशानियों का अंत किया है। उसने हमें दुनिया अपनी मुट्ठी में करने की ताकत दी है। आप बूझें तो जाने - इस युवा हस्ती का नाम क्या है? यह उस सुपर हीरो का नाम है दुनिया जिसकी बेक़दर दीवानी है। कदमों में जिसके सारा जहान है। इस विश्व नायक का नाम है - इंटरनेट। जी हाँ! आज से 20 वर्ष पहले यानि 13 मार्च 1989 को एक ब्रिटिश विज्ञानी ने अपने एक शोधपत्र में इंटरनेट जैसी किसी चीज का ज़िक्र किया था। उसके बाद उन्होंने सीईआरएन परमाणु शोध संस्थान, स्विट्जरलैंड के अपने बॉस को इसके बारे में बताया। लेकिन उनके बॉस ने इस उत्साही विज्ञानी के उर्वर विचार को बकवास कहकर खारिज तो नहीं किया लेकिन उनके इस आइडिया को अस्पष्ट लेकिन रोमांचक ठहराया। अब आप जरूर जानना चाहने लगे होंगे कि उस विज्ञानी का नाम क्या है। उनका नाम टिम बर्नर्स ली है।

दुनिया की पहली वेबसाइट स्विट्जरलैंड में बनायी गयी थी और वह 1991 में ऑनलाइन हुई थी। इन बीस सालों में इंटरनेट ने लंबे कदम भरे हैं। दो दशक की एक छोटी यात्रा में उसका खजाना बेमिसाल उपलब्धियों से भर गया है। उसने सूचना युग और साइबर संसार का एक सर्वथा नया स्थापत्य गढ़ दिया है। उसके भीतर ही मनुष्य के जीवन की नई संभावनाओं और नई खोज की जुस्तज़ू में उसके उठने वाले कदमों की कूटबद्ध भाषा छिपी है। इसकी लिपि जो पढ़ लेगा वह आगामी इतिहास में शायद एक नयी सभ्यता का वृतांत लिखने वाला वेदव्यास बन जाए। ख़ैर छोड़िए। बहुत गहराई में जाने की जरूरत नहीं है। ये सब प्रश्न और मुद्दे सभ्यता और संस्कृति के विमर्श में आते हैं। हम यह देखने की कोशिश करेंगे कि इंटरनेट हमारे आज के ताजा वर्तमान में किस तरह नुमाया है और उसमें उड़ान के कितने पंख लग चुके हैं। एक आंकड़े के मुताबिक 20 करोड़ से भी अधिक वेबसाइट यानी डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू और 1 ट्रिलियन यूआरएल मौजूद हैं और उसका इस्तेमाल करने वालों की तादाद 1 अरब 60 करोड़ है। इंग्लैंड की 70 फीसदी जनता इंटरनेट का इस्तेमाल करती है।
यह सच है कि बर्नर्स ली को आज के इंटरनेट का जनक माना जा सकता है। लेकिन इंटरनेट की संकल्पना की जड़ें 20 साल और पीछे जाती हैं। इसलिए विज्ञानियों और कंप्यूटर इंजीनियरों का एक तबका इसे इंटरनेट की 40वीं वर्षगांठ भी बता रहा है। ठीक है इंटरनेट अगर 40 साल का भी हो गया हो तो क्या फर्क पड़ता है। इंटरनेट तो इंटरनेट है। हुआ यूं कि पहली बार 2 सितंबर 1969 को कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में पहली बार 15 मीटर लंबी केबल से दो कंप्यूटरों के बीच डाटा का अवागमन संभव हुआ। इस परिघटना के गर्भ से इंटरनेट का जन्म हुआ। यही समय था जब ARPANET यानि एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी नेटवर्क की शुरूआत हुई थी। ARPANET आधुनिक इंटरनेट का बचपन था। यह प्रौद्योगिकी पैकेट स्विचिंग नेटवर्क पर आधारित थी। इसमें भी ई-मेल तथा एफटीपी जैसी सुविधाएं मौजूद थीं। आज के वेबआधारित इंटरनेट में भी यही प्रणाली काम करती है। फर्क सिर्फ यूजर इंटरफेस का है। बर्नर्स ली ने ऑनलाइन सूचनाओं को नेटवर्क बनाने की एक नई प्रणाली का खाका खीँचा। उन्होंने ने सोचा कि क्यों न एक ऐसी प्रणाली बनायी जाए जिसके द्वारा हाइपरटेक्स्ट डाक्यूमेंट आपस में जुड़े हों। अपने इस प्रस्ताव के एक साल के भीतर ही बर्नर्स ली एक इंटरनेट ब्राउजर विकसित करने में सफल हो गए। उन्होंने ने ही इस नवजात इंटरनेट का नामकरण www के रूप में किया। 1971 में टीसीपी और आईपी प्रोटोकाल बनने के बाद ईमेल का श्री गणेश हुआ। पेशे से कंप्यूटर इंजीनियर टॉमलिनसन ने सबसे पहले वर्ष 1971 में ईमेल का प्रयोग किया था। उस समय वे अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के तहत बोल्ट बेरानेक एंड न्यूमैन नामक एक कंपनी में काम कर रहे थे।

फिर क्या था? नो लुकिंग बैक। पहले पाँच वर्ष के भीतर मोजैक वेब ब्राउजर आया। उसके आगे की कड़ी में नेट्स्केप नेविगेटर आया। इसकी बदौलत जनसामान्य तक वेब की पहुँच हो गई। मोजैक को यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए लिखा गया था। इसके द्वारा इन-लाइन ग्राफिक्स तथा हाइपरलिंक्स को प्रदर्शित किया जा सकता था। वर्ष 1993 के मध्य तक 130 वेबसाइट बन चुके थे जो इंटरनेट के जन्म के 5वें साल यानि 1994 में बढ़कर 12000 तक पहुँच गया था। अब वेब अपने व्यावसायीकरण के दौर में पदार्पण कर चुका था। वर्ष 1999 तक आते-आते माइक्रोसॉफ्ट ने नेट्स्केप नेविगेटर को टक्कर देने वाले इंटरनेट एक्सप्लोरर को लांच किया। माइक्रोसॉफ्ट विंडोज में पूरी तरह समाहित होने के कारण अंतत: इंटरनेट एक्सप्लोरर का सिक्का जम गया। यही वह साल था जब गूगल जैसे सूचना के लेजेंडरी 'सुपरहाईवे' का जन्म हुआ था।

अब हमारा 'वेबसंजाल' हमारे सामने सिर्फ स्थिर सूचनाएं ही नहीं परोसता है बल्कि उसका पूरा आँचल चंचल छवियों से भर गया है। जावा स्क्रिप्ट, एक्टिव एक्स कंट्रोल तथा कैसकेडिंग स्टाइल शीट के आगमन के बाद वेबपृष्ठों पर श्रव्य और दृश्य मल्टीमीडिया की सामग्री, ऑन-लाइन आवेदन, ई-शॉपिंग, ई-बुकिंग, ई-टिकट के अलावा एनिमेशन अर्थात जीवंत छवियों का मायाजाल आम बात हो चली है। इसी साल तमाम सर्च इंजन भी आए और काफी लोकप्रिय भी हुए। इंटरनेट के आकाश में ये ब्राउजरों और सर्च इंजनों का घमासान इन माध्यमों की अभूतपूर्व लोकप्रियता का प्रमाण है। इसे ही इंटरनेट की दुनिया में 'डॉट कॉम' क्रांति भी कहा गया। अमेजन, ईबे, एक्सपीडिया, गूगल, याहू जैसे न जाने कितने डॉट कॉम एक के बाद एक आते गए।

इधर इंटरनेट की एक भूमिका बहुत चर्चा के केंद्र में है। वह है - हमारे सामाजिक संबंध पर उसका प्रभाव। इसे ही 'सोशल नेटवर्किंग' भी कहा जा रहा है। यहाँ तक की यात्रा के बाद वेबयूजर का मन अब वेब पर अपनी तरफ से कुछ परोसने के लिए ललचाने लगा। अभी तक वह केवल दुनिया भर की वेबसाइटों पर उपलब्ध सामग्री का एकतरफा वाचक था। लेकिन अब वह अपना भी कुछ सुनाना चाहता था। ब्लॉगिंग इसी का प्रतिफल है। अब संवाद दो-तरफा हो गया। इंस्टैंट मैसेजिंग, चैटरूम वगैरह 'सोशल नेटवर्किंग' की नई दिशाएँ बनकर खुले हैं। इंटरनेट का यह दौर ई-मेल के बाद का है।

सुखद संयोग है कि इस साल के अगस्त में भारत में भी इंटरनेट शुरू होने के 15 वर्ष पूरे हो जाएंगे। आइए! एक जायजा लें अपने देश में इंटरनेट के सफ़र का। इस दिशा में पहला कदम उठाने का श्रेय जाता है वीएसएनएल को जिसने वर्ष 1995 में 14 अगस्त को डायल-अप मोडेम के जरिए देश के चार महानगरों में आम जनता के लिए Gateway Internet Acess Service का शुभारंभ किया। थोड़े ही दिनों में यह सुविधा बेंगलूर और पुणे में भी खोल दी गई। 1996 में अजित बालकृष्णन ने rediff.com और इसी साल मुंबई के एक होटल में देश के पहले साइबरकैफे की भी शुरूआात हुई। अगले साल यानि 1997 में आईसीआईसीआई बैंक ने पहली ऑनलाइन बैंकिंग वेबसाइट शुरू की। याद रहे यह डॉट कॉम का दौर था और इसी साल भारत में बहुचर्चित naukri.com की नींव पड़ी। वर्ष 1998 में भारत सरकार द्वारा इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर नीति को एक ठोस रूप देकर इस क्षेत्र में नयी संभावनाओं के द्वार खुल गए। इस क्रम में sify.com का जन्म हुआ जो देश का प्रथम इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर बना। इसी साल पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट देवांग मेहता ने Nasscom की स्थापना की थी। अगले वर्ष 1999 में देश का पहला हिन्दी पोर्टल 'वेबदुनिया' इंटरनेट जगत का हिस्सा बना था। वर्ष 2000 में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम बना। Ebay की तर्ज पर भारत में भी Bazee.com लांच हुआ और Yahoo तथा MSN ने अपने भारतीय संस्करण yahoo.co.in तथा msn.co.in के रूप में पेश किए। आईटीसी ने अपना e-choupal शुरू किया और Tehelka.com की धूम इसी साल मची थी। फिर 2001 में भारतीय रेल ने irctc.com नाम से ऑन-लाइन टिकट बुक करने तथा अन्य सूचनाएं देने वाली वेबसाइट शुरू किया। देश का पहला साइबर अपराध पुलिस थाना बेंगलूर में स्थापित हुआ। नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में एयर डेक्कन वर्ष 2003 में अपने यात्रियों के लिए इंटरनेट पर ऑन-लाइन टिकट बुक कराने की सुविधा देने वाला पहला एयरलाइन बन गया। वर्ष 2004 में indiabulls.com & indiainfoline.com के लांच होने के बाद ऑन-लाइन शेयर ट्रेडिंग का दौर शुरू गया। अब तो ऑन-लाइन शेयर ट्रेडिंग करने वालों की 10 लाख से ऊपर पहुँच गई है। 2005 तक आते-आते देश में नेटयूजरों की तादाद लगभग 4 अरब हो गई थी। 2 लाख से अधिक साइबर कैफे बन चुके थे। भारत में ई-कॉमर्स के ज़रिए 570 करोड़ से ज्यादा का व्यापार हो रहा है। 2009 तक की स्थिति के अनुसार भारत में इंटरनेट प्रयोक्ताओं अर्थात नेटिजनों की संख्या 8 करोड़ 10 लाख से ऊपर थी। फिर भी यह संख्या हमारी कुल आबादी के सामने केवल 7% है। ऊपर से तथ्य यह है कि 90% से अधिक इंटरनेट यूजर भारत के मुंबई, बेंगलूर, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नै, पुणे, हैदराबाद, अहमदाबाद, सूरत तथा नागपुर जैसे सिर्फ़ 10 बड़े शहरों के निवासी हैं। भारत में 81 मिलियन इंटरनेट यूजरों की एक बड़ी फौज के साथ विश्व के टॉप टेन सूची में चौथे पायदान पर पहुँच गया है। इन टॉप टेन देशों की सूची नीचे देखिए:
1. अमेरिका - 220 मिलियन यूजर
2. चीन - 210 मिलियन यूजर
3. जापान - 88.1 मिलियन यूजर
4. भारत - 81 मिलियन यूजर
5. ब्राजील - 53 मिलियन यूजर
6. इंग्लैंड - 40.2 मिलियन यूजर
7. जर्मनी - 39.1 मिलियन यूजर
8. कोरिया - 35.5 मिलियन यूजर
9. इटली - 32 मिलियन यूजर
10. फ्रांस - 31.5 मिलियन यूजर

लेकिन भारत ब्राडबैंड कनेक्शन के आँकड़े में विश्व की टॉप टेन सूची में अपना स्थान नहीं बना पाया है। हालांकि भारत में इंटरनेट कनेक्शन की संख्या 13.5 मिलियन से अधिक है लेकिन ब्राडबैंड कनेक्शन लगभग 9 मिलियन ही है। बिजनेस स्टैंडर्ड के 14 जुलाई 2009 संस्करण में प्रकाशित एक ख़बर के अनुसार आई टी हार्डवेयर इंडस्ट्री की शीर्ष संस्था मैन्युफैक्सचर्र्स एसोसिएशन फॉर इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी (एमएआईटी) का अनुमान है कि 2012 तक भारत में इंटरनेट यूजरों की संख्या 500 मिलियन के पार जा सकती है। ब्राडबैंड कनेक्शन भी 100 मिलियन तक जा सकता है बशर्ते इंफ्रस्ट्रक्चर संबंधी अड़चनें दूर हो जाएं और 3-जी तथा वाई मैक्स नेटवर्क प्रारंभ कर दिए जाएं। 3-जी सेवा शुरू हो जाने के बाद निश्चित रूप से ये लक्ष्य अब हमसे दूर नहीं होंगे। एक सर्वेक्षण में यह भी पाया गया है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में भी इंटरनेट ने घुसपैठ बना ली है। सन् 2000 में ग्रामीण भारत के छोटे कस्बों में इंटरनेट का प्रयोग मात्र 5 प्रतिशत था जो अब 8 बड़े शहरों के 34 प्रतिशत इंटरनेट प्रयोग को पछाड़कर 36 प्रतिशत हो गया है। यह बदलते हुए भारत की तस्वीर का एक सशक्त पहलू है। भारत के 81 मिलियन इंटरनेट यूजरों में से 72 प्रतिशत यूजर 21-35 आयु-वर्ग की स्कूली नौजवान पीढ़ी के हैं।

इसी प्रकार एक सर्वेक्षण के मुताबिक 2013 तक भारत का दूरभाष घनत्व (Teledensity) 100% से अधिक हो जाएगी। यानि देश की आबादी से अधिक मोबाइल कनेक्शन हो जाएंगे। टेलीफोनी के क्षेत्र में इस अभूतपूर्व वृद्धि के बाद भारत इस क्षेत्र के महारथी चीन को परास्त दुनिया का सबसे बड़ा टेलीकॉम बाज़ार बन जाएगा। ट्राइ की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार भारत में इस समय भारत में टेलीफोन ग्राहकों की संख्या 638.05 मिलियन है। इसमें 601.22 मिलियन वायरलेस कनेक्शन तथा शेष 36.83 मिलियन वायरलाइन कनेक्शन हैं। कुल दूरभाष घनत्व 54.10 प्रतिशत है।

अब 3G टेक्नोलॉजी के भारत में आगमन के बाद टेलीकॉम सेक्टर में क्रांतिकारी बदलाव आने वाले हैं। 3G टेक्नोलॉजी मोबाइल पर ब्राडबैंड सहित दूरसंचार की तेज और व्यापक सेवाएं संभव करने वाली प्रौद्योगिकी है जिसकी मदद से मोबाइल पर भी इंटरनेट सुविधा उपलब्ध हो जाती है। इस प्रकार भारत में 3G से इंटरनेट और टेलीफोनी दोनों का प्रयोग और भी अधिक जनसुलभ एवं जनप्रिय बन जाएगा। इससे टेलीकॉम सस्ता, सरल, तेज और व्यापक होगा।

इंटरनेट और कंप्यूटर के भी दो पहलू हैं। अपने उपयोग और दुरुपयोग के आधार यह वरदान और अभिशाप दोनों साबित हुआ है। कंप्यूटर का लक्ष्य अथवा औजार के रूप में दुरुपयोग को ही साइबर अपराध कहा जाता है। इसके दुरुपयोग को रोकने वाले कानूनों को साइबर कानून कहा जाता है। साइबर कानून ही इंटरनेट कानून कहलाते हैं। भारत में भी वर्ष 2000 में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम बनाया गया। हैकिंग, वर्म अथवा वाइरस अटैक, डॉस अटैक जैसे दुरुपयोग कंप्यूटर को ही निशाना बनाकर तथा साइबर आतंकवाद, ईएफटी घोटाले, क्रेडिट कार्ड घोटाले, अश्लीलता परोसने जैसे दुरुपयोग कंप्यूटर को हथियार बनाकर किए जाते हैं। इसी तरह ई-मेल स्पूफिंग, ई-मेल स्पैमिंग, ई-मेल बॉम्बिंग भी साइबर अपराध की कोटि में आते हैं।

इस प्रकार आप देखेंगे अपने जन्म के मात्र 20 वर्षों में इंटरनेट ने अपने नाम के अनुरूप वर्ल्ड वाइड लोकप्रियता हासिल की है। भविष्य में यह ज्ञानात्मक और सूचनात्मक संसार के किन-किन गली-कूचों की सैर करवाएगा, हम कुछ कह नहीं कह सकते। यह अनुभव और प्रतीति के कितने नये द्वार अभी खोलने वाला है - यह भी भविष्य के गर्भ में है। लेकिन इतना तो निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि इंटरनेट ने पृथ्वी पर इंटेलिजेंस और इन्फार्मेशन के सभी ज्ञात आयामों को हमारे अनुभव के छोर से जोड़ दिया है। यह डिजीटल यथार्थ और प्रत्यक्ष यथार्थ के बीच के अंतराल को लगातार छोटा करता जा रहा है। यह स्नायविक, आवेगात्मक और बुद्धिगम परिधियों पर एक नये प्रकार का पुनर्लेखन कर रहा है।

इंटरनेट के बारे में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की बड़ी सहजता से कही हुयी एक बात याद आती है - When I took office, only high energy physicists had ever heard of what is called the World Wide Web. Now even my cat has it's own page. इससे इंटरनेट की बढ़ती हुयी लोकप्रियता और प्रयोग प्रमाणित होता है।